होम
सिटीजन रिपोर्टर
सर्च
कृषि विज्ञान केन्द्र, सिरिस, औरंगाबाद मे पिछले गुरुवार (16 दिसंबर) को शून्य बजट प्राकृतिक खेती कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसका उद्घाटन केन्द्र के वरीय वैज्ञानिक एवं प्रधान डॉ नित्यानंद, श्री रणवीर सिंह, जिला कृषि पदाधिकारी, एवं श्री सुधीर कुमार राय, परियोजना निदेशक, आत्मा औरंगाबाद ने संयुक्त रूप से किया।
Image: शून्य बजट खेती कार्यशाला का उद्घाटन करते वरीय पदाधिकारी
इस अवसर पर, प्राकृतिक और जीरो बजट फार्मिंग पर गुजरात में चल रहे तीन दिवसीय कार्यक्रम के समापन पर कार्यक्रम को वर्चुअली संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि प्राकृतिक खेती से जिन्हें सबसे अधिक फायदा होगा, वो हैं देश के 80 फीसद किसान। वो छोटे किसान, जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम भूमि है। इनमें से अधिकांश किसानों का काफी खर्च, केमिकल फर्टिलाइजर पर होता है। इस दौरान उन्होंने प्राकृतिक खेती के फायदों के बारे में बताया और कहा कि इसका सबसे ज्यादा लाभ छोटे किसानों को होगा। गुजरात के राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत जी ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्राकृतिक खेती के विस्तार से तकनीकी जानकारी दिया।
कृषि विज्ञान केन्द्र, सिरिस, औरंगाबाद में आए हुए अतिथि, किसान एवं महिला किसानों का स्वागत करते हुए डॉ नित्यानंद ने कहा कि शून्य बजट प्राकृतिक खेती कृषि पद्धति में बजट शब्द खर्च को प्रदर्शित करता है अर्थात् शून्य बजट खेती बाज़ार में उपलब्ध संसाधनों जिसमें रासायनिक उर्वरक, खाद और पेस्टिसाईड शामिल है, के उपयोग के बिना प्राकृतिक आगतों द्वारा खेती खेती करना जिससे कृषि पद्धति में खर्च शून्य हो जाता है। इसमे मुख्य रूप से देशी गाय के गोबर एवं गौमूत्र का प्रयोग कर के जीवामृत, बीजामृत का प्रयोग करके पोषक तत्व का पूर्ति किया जाता है।
हमारे यहां पाया जाने वाला देशी केंचुआ मिट्टी एवं इसके साथ जमीन में मौजूद कीटाणु एवं जीवाणु जो फसलों एवं पेड़- पौधों को नुकसान पहुंचाते है, उन्हें खाकर खाद में रूपान्तरित करता है। साथ ही जमीन में अंदर-बाहर ऊपर-नीचे होता रहता है, जिससे भूमि में असंख्यक छिद्र होते हैं, जिससे वायु का संचार एवं बरसात के जल का पुर्नभरण हो जाता है। इस तरह देसी केचुआ जल प्रबंधन का सबसे अच्छा वाहक है साथ ही खेत की जुताई करने वाले हल का काम भी करता है ।
उन्होंने यह भी कहा कि किसान भाई पहले वर्ष अपने खेत के कुछ ही भाग में प्राकृतिक खेती को अपनाएं तथा लाभ होने पर अगले वर्ष इसे विस्तार करें। जीरो बजट प्राकृतिक खेती करने पर परंपरागत खेती के लिए उपयोग में लाए जाने वाले उर्वरक, रासायनिक कीटनाशी, फफूँदनाशी, खरपतवारनाशी पर होने वाले खर्च का बचत होती है, विषाक्तमुक्त खाद्य पदार्थ का उत्पादन भी प्राप्त किया जा सकता है एवं मृदा स्वास्थ्य के साथ साथ मनुष्यों के स्वास्थ्य को भी बचाया जा सकता है।
श्री रणवीर सिंह, जिला कृषि पदाधिकारी ने कहा किसानों को उर्वरक के उपर निर्भरता को कम करना चाहिए एवं प्राकृतिक खाद का प्रयोग संयुक्त रूप से करना चाहिए। उन्होंने कहा कि किसानों को उर्वरक की कमी नही होगी यदि किसान भाई कार्बनिक उर्वरकों के साथ रासायनिक उर्वरकों का संतुलित प्रयोग करेंगे।
श्री सुधीर कुमार ने कहा कि पहले हमारे यहां रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग नही होता था तब भी खेती होता था लेकिन बढ़ते जनसंख्या को देखते उत्पादन को बढ़ाने के लिए किसान भाई रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग आवश्यकता से अधिक मात्रा में करने लगे जिसके कारण मृदा स्वास्थ्य, मृदा उर्वरता एवं उत्पादकता प्रभावित हो रहा है।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए पशु वैज्ञानिक डॉ आलोक भारती ने किसानों को प्राकृतिक खेती मे पशु पालन के महत्व की जानकारी दी जिससे किसानों को अधिक से अधिक लाभ प्राप्त हो सके।
Image: कार्यशाला में उपस्थित कृषक, महिला कृषक और छात्र
इस अवसर पर जिला के विभिन्न गाँव से 450 से अधिक कृषक एवं कृषक महिलाओं के साथ RAWE के छात्रों ने भाग लिया तथा इस अवसर मौके पर केन्द्र के सभी वैज्ञानिक एवं कर्मचारी उपस्थित रहे।
Source: Aurangabad Now