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सिटीजन रिपोर्टर
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विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा हर साल 14 जून को रक्तदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य स्वैच्छिक रक्तदान को बढ़ावा देना है। रक्त में अग्गुल्यूटिनिन की मौजूदगी के आधार पर अलग-अलग रक्त समूह (ABO) में वर्गीकरण करने वाले विख्यात ऑस्ट्रेलियाई जीवविज्ञानी वैज्ञानिक और भौतिकीविद कार्ल लैंडस्टेनर के जन्मदिवस पर इस दिन को चुना गया था।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में सालाना एक करोड़ यूनिट रक्त की आवश्यकता है लेकिन लगभग 75 लाख यूनिट ही उपलब्ध हो पाता है। करीब 25 लाख यूनिट रक्त के अभाव में हर साल सैकड़ों मरीज दम तोड़ देते हैं। विशेषज्ञों की माने तो भारत में कुल रक्तदान का केवल 59 फ़ीसदी हिस्सा ही स्वैच्छिक रक्तदान से आता है।
2016 से पहले औरंगाबाद के ब्लड बैंकों की स्थिति भी काफी विकट थी। हर दिन बड़ी मुश्किल से 5 - 7 यूनिट ब्लड ही उपलब्ध हो पाता था। पथ प्रदर्शक जैसी सामाजिक संस्थाओं के सहयोग से आज कुछ बदलाव आया है।
रक्तदान की बात करें और अपने जिले औरंगाबाद के युवा समाजसेवी, पत्रकार बर्मेंद्र कुमार सिंह जी का नाम ना लें तो यह बात बड़ी बेमानी होगी। अपनी संस्था पथ प्रदर्शक के माध्यम से वह पूरे देश में रक्तदान के प्रति जागरूकता अभियान चला रहे हैं।
वह अब तक 100 से ज्यादा रक्तदान शिविर का संचालन कर चुके हैं। पिछले वर्ष कोरोना काल में जब ब्लड बैंकों में रक्त की कमी हो गई थी तो उन्होंने बिहार में पहली बार लगातार 9 दिनों तक कोरोना गाइडलाइंस का पालन करते हुए रक्त की उपलब्धता सुनिश्चित करवाई थी, इसके लिए उन्हें बिहार स्टेट ऐड्स कंट्रोल सोसायटी (BSACS) ने सम्मानित भी किया था।
होमियोपैथिक डॉक्टर फिर डीडी-एबीपी न्यूज़ के पत्रकार, पटना हाई कोर्ट के अधिवक्ता, और समाजसेवी बमेन्द्र कुमार सिंह की ज़िंदगी एक थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चे की वजह से बदल गयी। इसकी कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। बात 2016 के आसपास की है, उस समय तक इन्होंने कभी भी रक्तदान नहीं किया था क्यूंकि इनको सुई से डर लगता था। फिर भी अस्पताल विजिट के दौरान इन्होंने अपना रजिस्ट्रेशन ब्लड बैंक में कर दिया कि वो रक्तदान करना चाहते हैं। उसके बाद से जब भी अस्पताल में ब्लड की जरूरत होती थी तो इनको संपर्क किया जाता था और ये सुई के डर से कुछ बहाना बना दिया करते थे।
12 मई 2016 को इन्होंने पहली बार एक थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चे की प्राणरक्षा हेतु अपना ब्लड डोनेट किया। ये वही क्षण था जब उन्होने ये प्रण लिया कि अब रक्त की कमी किसी भी व्यक्ति के इलाज में बाधक नहीं बनेगा।
16 मई 2016 को ही इन्होंने ब्लड डोनेशन का पहला कैंप आयोजित किया जिसमें सिर्फ 5 लोग ही शामिल हुये। हौसला ना खोते हुए जन कल्याण की भावना के बदौलत ही आज ये पूरे देश में रक्त दान शिविर लगा रहे हैं और हजारों लोग इस मुहिम का हिस्सा बन रहे हैं। उनके ही प्रयास से आज औरंगाबाद ब्लड बैंक में रक्त कमी दूर हो पायी है।
प्रशासन के सहयोग के बिना ही वह आज भी औरंगाबाद, गया, रोहतास ,रांची आदि जैसे शहरों में रक्तदान कैंप और जागरूकता अभियान चला चले रहे हैं। 2019 में इन्होंने सम्पूर्ण बिहार रक्तदान जागरूकता अभियान को शुरू किया था लेकिन फंडिंग के अभाव में ये सिर्फ दो ही प्रमंडल पटना और मगध प्रमंडल में ही संभव हो पाया। इसके तहत नुक्कड़ नाटक टीम के साथ घूम घूम कर जागरूकता अभियान चलाया गया था जो काफी सफल रहा था।
बमेन्द्र जी मानना है कि - रक्तदान एहसान नहीं, नैतिक ज़िम्मेदारी है!
जब हमनें उनसे बात कि तो उन्होने बताया कि आने वाले दिनों में वह पूरे देश में रक्तदान अभियान चलाने वाले हैं। उन्होने देश के युवाओं से अपील किया कि वो आगे आयें और उत्साह के साथ रक्त दान करें।
औरंगाबाद नाउ आप सभी पाठको से अनुरोध करता है कि हर तीन महीनों मे एक बार रक्तदान अवश्य करें।
WHO के अनुसार 18 वर्ष या उससे अधिक और 60 वर्ष या उससे कम उम्र के लोग जिनका वजन 45 किलो से कम ना हो और निम्न अहर्ताओं को पूरा करते हैं, रक्तदान कर सकते हैं-
इसके अलावा रक्तदान करने से पहले, वहाँ मौजूद डॉक्टर आपके हेल्थ संबन्धित चेक करने के बाद ही आपको रक्तदान की सलाह देते हैं।
रक्तदान करना काफी आसान है। इसके लिए आपको अपने नजदीकी लाइसेन्स प्राप्त ब्लड बैंक में जाना होगा। (औरंगाबाद सदर अस्पताल या नारायण मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल, जमुहार)। वहाँ आपको अपने आधार या किसी अन्य परिचय पत्र को देकर स्वैच्छिक रक्तदान (वॉलंटियर ब्लड डोनेशन) के लिए पंजीकरण करवाना होगा। वहाँ मौजूद डॉक्टर आपका क्विक हैल्थ चेकअप करेंगे और फिर आपको ब्लड डोनेशन रूम में में जाना होगा जहां से आपके शरीर से ब्लड लिया जाएगा। इस प्रक्रिया में लगभग आधे घंटे का समय लगता है।
रक्तदान के बाद आपको एक डोनर कार्ड दिया जाता है जिसकी वैलिडिटी 6 महीनों की होती है। इस डोनर कार्ड की मदद से आप आपात स्थिति में अपने परिजनों के लिए रक्त प्राप्त कर सकते हैं। एक बार ब्लड डोनेट करने के बाद आप 3 महीनों के बाद फिर से रक्तदान कर सकते हैं।
रक्तदान को लेकर कुछ भ्रांतियां यह भी है कि रक्तदान करने के बाद शरीर में कमजोरी हो जाती है और चक्कर आता है जो कि बिलकुल गलत है। आपके शरीर से खून निकालने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली निडिल (सुई) भी अलग तरह की होती है। इससे जरा सा भी दर्द का अनुभव नहीं होता है। याद रखिए यदि एक सुई के चुभन को बर्दाश्त कर लेने से किसी की जान बच सकती है तो इस पुण्य कार्य से पीछे नहीं हटना चाहिए।
Source: Aurangabad Now