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सिटीजन रिपोर्टर
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सहारा इंडिया के ऑफिस में हंगामे की खबर को आपने कितनी ही बार देखा और सुना होगा। निवेश का मैच्युरिटी पूरा होने के बाद भी ग्राहकों को उनके पैसे नहीं मिल पा रहे हैं। जहां सहारा इंडिया के अधिकारी पैसे देने का वायदा करते नज़र आ रहे हैं वहीं लोगों का कहना है कि सहारा इंडिया में उनके पैसे अब डूब चुके हैं।
इन्ही विवादों के निपटारे के लिए शुक्रवार को समाहरणालय कक्ष में जिला पदाधिकारी सौरभ जोरवाल की अध्यक्षता में सहारा इंडिया समूह के निवेशकों के परिपक्वता राशि के भुगतान से संबंधित बैठक की गई। इस मीटिंग में सहारा इंडिया के पदाधिकारी एवं शाखा प्रबंधक भी उपस्थित थे।
बैठक में जिला पदाधिकारी ने सहारा इंडिया के पदाधिकारियों से पूछा कि निवेशकों की परिपक्वता राशि पूर्ण होने के बाद भी भुगतान में आखिर विलंब क्यों हो रहा है? इस पर सहारा इंडिया के पदाधिकारियों द्वारा बताया गया कि सर्वोच्च न्यायालय एवं सभी के द्वारा राशि निकासी पर रोक लगा दी गई है और जिले के सभी शाखा में राशि जमा ना के बराबर हो रहा है।
साथ ही साथ निवेशकों के निवेश की राशि लगातार परिपक्व हो रही हैं और राशि ना होने के कारण भुगतान में समस्या आ रही है। अधिकारियों ने बताया कि सहारा ग्रुप की कुल सकल परिसंपत्ति 2,89,252 करोड़ रुपया है। जबकि सहारा इंडिया की कुल बकाया राशि केवल 1,05,854 करोड़ रुपया है। इसके अलावा सहारा इंडिया को ₹24,000 की धनराशि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश अनुसार मिलनी बाकी है जो कि अभी सेबी (SEBI) के पास जमा है।
Image: बैठक के दौरान जिलाधिकारी और सहारा इंडिया के अधिकारीगण
सहारा के पदाधिकारियों ने यह भी बताया कि जिले में जनवरी 2015 से लेकर दिसंबर 2021 तक 1,70,224 निवेशकों के परिपक्वता राशि की भुगतान की जा चुकी है और अब 8,64,113 निवेशकों का भुगतान करना बाकी है।पदाधिकारियों ने जिलाधिकारी को यह आश्वासन दिया कि सर्वोच्च न्यायालय एवं सभी के द्वारा राशि निकासी पर रोक हटते ही निवेशकों को परिपक्वता राशि का भुगतान ब्याज सहित कर दिया जाएगा।
जिला पदाधिकारी ने सहारा इंडिया के पदाधिकारियों को निवेशकों की जमा राशि जो परिपक्व हो चुकी है उसका शीघ्र भुगतान का प्रयास करने का आदेश दिया है।
यह कहानी 2009 से शुरू होती है। सितंबर 2009 में सहारा समूह की कंपनी सहारा प्राइम सिटी ने भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के समक्ष IPO यानि प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव रखा। सरल शब्दों में सहारा समूह निवेशकों के लिए शेयर बाज़ार में उतरना चाह रही थी।
अक्तूबर 2009 में सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉर्पोरेशन लिमिटेड और सहारा हाऊसिंग इनवेस्टमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने भी कंपनी रजिस्ट्रार के पास आईपीओ (रेड हेरिंग प्रोस्पेक्टस) की अर्ज़ी दाखिल की।
BBC की रिपोर्ट्स को मानें तो सेबी के समक्ष शिकायत करने वाली एक ग्रुप थी जिसका नाम था प्रोफेशनल ग्रुप फ़ॉर इन्वेस्टर्स और दूसरे थे रौशन लाल। इन्हीं के शिकायत पर सेबी ने जांच बिठाया और विवाद बढ़ा।
कुछ मीडिया के खबरों अनुसार उस समय के तत्कालीन केंद्र सरकार के कुछ राजनेताओं ने और तत्कालीन सेबी प्रमुख ने सहारा और सेबी के विवाद को अपनी नाक की बात बन ली जिसका नतीजा निवेशकों को भुगतना पड़ रहा है।
बाद की जांच में ये बात सामने आई कि सहारा समूह ने 50 से अधिक निवेशकों से धन जुटाने के लिए जो तरीका अपनाया था उसके लिए सेबी की आज्ञा लेनी अनिवार्य थी जिसका पालन नहीं किया गया। जबकि सहारा के मामले में करोड़ों निवेशकों से धन जुटाया गया था।
सेबी ने सहारा की दो कंपनियों के खिलाफ अंतरिम आदेश जारी किया जिसमे कहा गया कि निवेशकों से जुटाया गया धन वापस किया जाए।
सहारा ग्रुप ने सेबी के इस आदेश के खिलाफ Securities Appellate Tribunal में विरोध दर्ज किया। Securities Appellate Tribunal ने सेबी के आदेश को सही ठहराते हुए सहारा की दोनों कंपनियों से तीन करोड़ निवेशकों के 25,781 करोड़ रुपए लौटाने को कहा।
जब बात नहीं बनी तो सहारा समूह ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। न्यायालय ने भी सहारा से निवेशकों के 24,000 करोड़ रुपए सेबी में जमा करवाने का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने सहारा समूह से इस राशि को तीन किस्तों में जमा करवाने के लिए कहा जिसमे से 5,120 करोड़ रुपए की राशि तुरंत जमा करानी थी।
जब सहारा दो बची हुई किस्तें जमा कराने में असफल रहा तब सेबी ने सहारा समूह के बैंक खाते फ्रीज़ करने और जायदाद को ज़ब्त करने के आदेश जारी किए।
सेबी ने सहारा ग्रुप के ख़िलाफ़ आदेश पालन न करने का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने सुब्रत रॉय को पेश होने का आदेश दिया। जब सुब्रत रॉय अदालत में हाज़िर नहीं हुए तब सुप्रीम कोर्ट ने उनके ख़िलाफ़ गैर-ज़मानती वारंट जारी किया। सुब्रत रॉय को लखनऊ में गिरफ़्तार करके पुलिस हिरासत में भेजा गया।
बाद में कईं सुनवाइयों के बाद सुब्रतराय को जमानत पर रिहा किया गया लेकिन सहारा ग्रुप और सेबी की यह लड़ाई खत्म नहीं हुई।
सेबी अदालत का फैसला ना मानने का आरोप लगातार सहारा ग्रुप पर लगाते आयी है। वहीं सहारा ग्रुप सेबी पर निवेशकों के पैसे ना लौटाने का आरोप लगाती रही है। इन दोनों की लड़ाई का खामियाजा अब आम लोग भुगत रहे हैं।
Source: Navbihar Times & BBC