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जानिए क्या है फसल विविधीकरण कार्यक्रम जिसका ज़िक्र MP सुशील कुमार सिंह ने संसद भवन में किया था

सत्यम मिश्रा

सत्यम मिश्रा

औरंगाबाद, Dec 15, 2021 (अपडेटेड Dec 19, 2021 2:25 PM बजे)

मंगलवार को जिले के सांसद श्री सुशील कुमार सिंह ने संसद के शीतकालीन सत्र में प्रश्नकाल के दौरान माननीय कृषि राज्य मंत्री से फसल विविधीकरण कार्यक्रम (Crop Diversification Programme)- CDP का ज़िक्र करते हुए किसानों के हित में कुछ सवाल पूछा था। उनके सवालों पर माननीय कृषि राज्य मंत्री ने सदन में ही जवाब भी प्रस्तुत किया था। 

लेकिन क्या आप माननीय सांसद महोदय के द्वारा जिक्र किये गए फसल विविधीकरण कार्यक्रम के बारे में जानते हैं? अगर नहीं तो आइए जानते हैं।

क्या है फसल विविधीकरण कार्यक्रम (Crop Diversification Programme) ?

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है विविधीकरण, मतलब विविधता। फसल विविधीकरण मतलब अलग अलग किस्म के फसलों को उगाना। हमारे देश में, खासकर मैदानी क्षेत्रों में आज भी पारंपरिक धान-गेहूं फसल की ही खेती की जा रही है जिसकी वजह से आज भी किसान अपनी उपज के लिए वर्षा पर निर्भर रहते हैं। वर्षा पर निर्भरता को दूर करने के लिए आजकल भूजल का दोहन और अलग अलग तरह के हानिकारक उर्वरकों का प्रयोग भी बढ़ा है।

सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य के साथ साथ इन चुनौतियों से निपटने के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के उपयोजना के तहत फसल विविधीकरण कार्यक्रम की शुरुआत की है। इसके अंतर्गत पारंपरिक फसलों के अलावा नए फसलों को उगाने पर जोर दिया जा रहा है।

पारंपरिक धान-गेहूं फसल प्रणाली की जगह फसल विविधीकरण को अपनाकर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के अधिक दोहन को कम किया जा सकता है। इसके साथ ही साथ इससे आमदनी में भी बढ़ोतरी कर सकते हैं। सिंधु-गंगा के मैदानी इलाकों में संभावित विकल्प के रूप में मक्का-सरसों-मूंग एवं मक्का-गेहूं-मूंग फसल प्रणाली से किसान उत्पादन की लागत में 15-25 प्रतिशत की कमी एवं 20-35 प्रतिशत कुल आय में बढ़ोतरी कर सकते हैं।^ इस प्रणाली से 65 से 70 प्रतिशत सिंचाई जल की भी बचत होती है। फसल विविधीकरण से कार्बन का संचय एवं मृदा की उर्वराशक्ति बनी रहती है। इससे फसल से संबंधित कीटों एवं रोगों के रोगजनक प्रभाव को नियोजित किया जा सकता है।

लगातार एक ही फसल प्रणाली अपनाने से विभिन्न आदानों जैसे-उर्वरक, पीड़कनाशी आदि की दक्षता में कमी आ रही है। इसके कारण प्रति इकाई उत्पादन के लिए आदानों की आवश्यकता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इससे उत्पादन लागत में वृद्धि हो रही है। इसके साथ ही गेहूं की बुआई के समय पर पंजाब व हरियाणा राज्यों में धान की कटाई के बाद फसल अवशेषों को खेत में जला दिया जाता है। इससे काफी मात्रा में वायु प्रदूषण के साथ-साथ मृदा से पोषक तत्वों की हानि होती है एवं बहुत सारे लाभकारी सूक्ष्मजीवों को भी नुकसान होता है।

कृषि विविधीकरण के अंतर्गत ही अब हॉर्टिकल्चर (फल, सब्जी और फूलों की खेती) को भी शामिल किया गया है। सांसद सुशील सिंह के द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए माननीय कृषि राज्य मंत्री ने इसपर भी चर्चा किया साथ ही साथ उन्होंने अलग अलग गैर पारंपरिक फसलों पर दिए जा रहे अनुदान की भी विस्तृत जानकारी दी। 

अगर गैर-पारंपरिक फसलों की खेती में हुआ नुकसान तो मिलेगा मुआवजा

संसद में प्रश्नकाल के दौरान सुशील सिंह ने माननीय कृषि राज्य मंत्री से सवाल किया था कि दलहन और तिलहन जैसी अधिक रिस्की फसलों की खेती के दौरान यदि आकस्मिक नुकसान हो जाता है तो सरकार किसानों की मदद कैसे करेगी? माननीय मंत्री जी ने जवाब देते हुए कहा कि भारत सरकार ने फसलों के नुकसान की भरपाई के लिए अनेकों योजनायें चला रखीं हैं। 

  • आकस्मिक नुकसान की भरपाई किसान प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के जरिये ले सकते हैं।
  • यदि अधिक नुकसान हो जाता है (किसी आपदा की स्थिति में) तो NDRF और SDRF फंड से भी भरपाई की जाती है।
  • इसके अलावा किसानों को किसान सम्मान निधि की राशि भी भेजी जा रही है।
  • नयीं वेरायटी की फसलों का भी विकास किया जा रहा है जिससे कम समय में और विपरीत क्लाइमेट में भी अधिक यील्ड प्राप्त किया जा सके।
  • दलहन और तिलहन की फसलों की खरीदी भी डेढ़ गुना अधिक MSP से की जा रही है।

Source: Aurangabad Now

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