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ऐतिहासिक देव सूर्य मंदिर का पत्थर फिर से टूटा! मंदिर का संरक्षण करने में लापरवाह न्यास समिति सवालों के घेरे में

संरक्षण की बाट जोहता इस मंदिर के क्षरण की शुरुआत 2014 में ही हो गयी थी जो अब तक जारी है। अगर न्यास समिति ससमय कोई उचित फैसला नहीं करती है तो ये किसी बड़े हादसे में भी तब्दील हो सकता है।

सत्यम मिश्रा

सत्यम मिश्रा

देव, औरंगाबाद, May 22, 2021 (अपडेटेड May 23, 2021 8:48 PM बजे)

स्टोरी हाइलाइट्स

ऐतिहासिक, पौराणिक एवं धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण सूर्य मंदिर औरंगाबाद के देव् प्रखंड में अवस्थित है।

इस मंदिर का एक उत्कृष्ट पत्थर टूट गया है।

धार्मिक न्यास समिति के अंतर्गत आता है ये मंदिर परिसर

औरंगाबाद शहर के रोम-रोम में बसा ऐतिहासिक, पौराणिक एवं धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण देव सूर्य मंदिर का अस्तित्व आज खतरे में नज़र आ रहा है। अपनी अनूठी शिल्प कला और भव्यता के लिए विख्यात आठवीं सदी के इस मंदिर का एक उत्कृष्ट पत्थर फिर से टूट गया है।


स्थानीय समाचार पत्र एजेंसी मगध एक्सप्रेस ने इस मुद्दे को जोर शोर से उठाया है। उनके रिपोर्ट के अनुसार इस मंदिर में पत्थर टूटने की यह पहली घटना नहीं बल्कि 2014 में विश्वकर्मा पूजा के दिन ही एक पत्थर मंदिर के पूर्वी व दक्षिणी भाग से टूट कर गिर गया था। वहीं 2016 में देव सूर्य मंदिर पर शाम में बिजली (ठनका) गिरने से अफरातरफरी मच गई थी। बिजली गिरने से मंदिर परिसर में पत्थर टूट कर गिरे थे। मंदिर परिसर से पत्थर के कई टूकड़े बरामद हुए थे। बिजली का प्रभाव मंदिर के सउंड सिस्टम एवं लाइट पर भी पड़ा था।


इस मंदिर की इतनी ऊंचाई होने के बावजूद भी इसकी सुरक्षा के मद्देनजर आज तक तड़ित चालक इंस्टॉल नहीं किया है।

दंतकथाओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने किया था

प्रचलित मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने किया था और विश्वकर्मा पूजा के दिन ही मंदिर से पत्थर टूटने की घटना को लोग कई तरह से देख रहे हैं।

देव सूर्य मंदिर की स्थापत्य कला के बारे में कई किवदंतियां हैं। सूर्य मंदिर में लगी शिला लेखों के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण आठवीं सदी माना जाता है। मंदिर की स्थापत्य से प्रतीत होता है कि इसके निर्माण में नागर शैली का समायोजन किया गया है। पत्थरों पर नक्काशी को देख कर पुरातत्व विभाग के लोग मंदिर के निर्माण में नागर व द्रविड शैली का मिश्रित प्रभाव वाली वेसर शैली का भी समन्वय बताते हैं।

इतने वर्षों बाद भी चमक नहीं हुई है फीकी

मंदिर में लगे इन पत्थरों की अब तक न तो मरम्मत कराने की आवश्यकता पड़ी थी और न ही रंगरोगन किया गया था। लाखों वर्ष बीत जाने के बावजूद इनकी चमक आज भी मौजूद है। सबसे अहम बात यह है कि सूर्य मंदिर में लगे पत्थरों में से जो एक पत्थर टूटा है, शिल्पकारों द्वारा उत्कृष्ट उस पत्थर को फिर से लगाना असंभव माना जा रहा है।

आचार्य किशोर कुणाल भी कर चुके हैं मंदिर का दौरा

बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष आचार्य किशोर कुणाल ने जब इस मंदिर का निरीक्षण किया था तब वे मंदिर परिसर में सीमेंट के बनाए गए देवी मंदिर के अलावा अन्य स्ट्रक्चर का विरोध किया था। मंदिर के पत्थर पर किए गए केमिकल पेंट को भी मंदिर के लिए नुकसान बताया था। हालांकि पूर्व अध्यक्ष के आदेश पर आजतक अमल नहीं किया गया है।

इतनी विशेषताओं के बाद भी उपेक्षित पड़ा है ये मंदिर

देव का सूर्यमंदिर को विश्‍व विरासत में शामिल करने की जरूरत है। संरक्षण के अभाव में मंदिर का पत्थर टूटकर गिर रहा है। मंदिर के गर्भ गृह में मुख्य द्वार के बिंब में दरार आ गया है। प्रवेश द्वार के ऊपर पत्थर थोड़ा दरक गया है। जानकारों के अनुसार अगर एक भी पत्थर का संतुलन बिगड़ा तो मंदिर को काफी नुकसान हो सकता है।

धार्मिक न्यास बोर्ड के अधीन है सूर्य मंदिर परिसर

वर्तमान में मंदिर धार्मिक न्यास बोर्ड के अधीन है। बोर्ड के द्वारा मंदिर के रख रखाव एवं देख रेख के लिए मंदिर न्याय समिति का गठन कर उसके अधीन दिया गया है। सदर एसडीएम कमेटी के अध्यक्ष हैं। इस संबंध में मंदिर न्यास समिति के सचिव कृष्णा चौधरी ने बताया कि मंदिर का पत्थर टूट गया है। जिसे जुड़वाने का प्रयास किया जा रहा है।

Source: Magadh Express

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