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सिटीजन रिपोर्टर
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आज रात यानि शुक्रवार 8 बजकर 34 मिनट पर भगवान भास्कर मकर राशि में प्रवेश कर जाएंगे। शास्त्रों की माने तो सूर्यास्त के बाद यदि सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होता है तो मकर संक्रांति का पुण्य काल अगले दिन होता है। इसीलिए इस वर्ष मकर संक्रांति का पर्व कल अर्थात शनिवार को मनाया जाएगा।
ज्योतिषाचार्यों बताया कि इस दिन भगवान सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश मरेंगे और उत्तरायण हो जाएंगे और इसके साथ ही खरमास खत्म हो जाएगा।
Image: औरंगाबाद में दुकानों पर तिलकुट की खरीदारी करते हुए लोग
मकर संक्रांति की कथा के अनुसार एक बार राजा सागर ने अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया और उस अनुष्ठान में अपने घोड़े को विश्व विजय के लिए खुला छोड़ दिया। तब इंद्रदेव ने उस अश्व को छल कर कुपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। यह बात जब राजा सागर ने जानी, तो वह कुपिल मुनि के आश्रम 60,000 पुत्र युद्ध को लेकर वहां पहुंच गए। यह सब देखकर कुपिल मुनि को क्रोध आ गया और उन्हें श्राप देकर सभी को भस्म कर दिया।
तब राजा सागर के पोते राजकुमार अंशुमान ने कुपिल मुनि के आश्रम में जाकर उनसे विनती मांगी और अपने परिजनों के उद्धार के लिए समाधान पूछा। तब कुपिल मुनि ने कहा यदि तुम अपने परिजनों का उद्धार करना चाहते हो, तो तुम्हें गंगा माता को धरती पर लाना होगा। यह सुनकर राजकुमार अंशुमान ने मां गंगा को धरती पर लाने की प्रतिज्ञा ली और उन्होंने कठिन तपस्या करनी शुरू कर दी। राजकुमार अंशुमान के कठिन तपस्या के बाद भी मां गंगा धरती पर नहीं आई। कठिन तपस्या की वजह से राजकुमार अंशुमान की जान चली गई।
तब राजा दिलीप के पुत्र और अंशुमान के पौत्र भगीरथ ने घोर तपस्या की। उनकी तपस्या को देखकर गंगा माता बेहद प्रसन्न हो गई। यदि गंगा माता स्वर्ग से सीधे धरती पर आती, तो धरती पर प्रलय हो जाता। गंगा माता को बांधकर रखने की क्षमता सिर्फ भोलेनाथ में थी। इस वजह से भागीरथ ने भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करनी शुरू कर दी। भागीरथ की तपस्या को देखकर भगवान शिव प्रसन्न हो गए और भगीरथ को मनवांछित वर मांगने को कहा।
तब भागीरथ ने भोलेनाथ से गंगा माता को अपने जटा में बांधकर धरती पर धीरे-धीरे प्रवाहित करने की विनती की। तब भोलेनाथ ने भगीरथ की यह इच्छा पूर्ण की। भागीरथ ने मां गंगा को कुपिल मुनि के आश्रम आने का अनुरोध किया। कुपिल मुनि के आश्रम में भागीरथ के पूर्वजों की राख रखी थी। पौराणिक कथा के अनुसार गंगा माता के पावन जल से भागीरथ के पूर्वजों का उद्धार हो गया। भागीरथ के पूर्वजों का उद्धार करने के बाद गंगा माता सागर में जाकर मिल गई। शास्त्र के अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही गंगा माता कुपिल मुनि के आश्रम पहुंची थी। इसलिए हिंदू शास्त्र में इस दिन गंगा स्नान करने का विशेष महत्व है।
भगवान सूर्य की दो पत्नियां थीं। एक का नाम छाया था, दूसरी का नाम संज्ञा था। सूर्य देव की पहली पत्नी छाया के पुत्र शनि देव थे। शनि देव का चाल चलन सही नहीं था, जिस वजह से सूर्य देव बहुत दुखी रहते थे। एक दिन सूर्य देव ने छाया के साथ शनि देव को एक घर दिया जिसका नाम था कुंभ। काल चक्र के सिद्धांत के अनुसार 11वीं राशि कुंभ है। सूर्य देव ने शनि देव के कुंभ रूपी घर देकर अलग कर दिया। सूर्य देव के इस कदम से शनि देव और उनकी मां छाया सूर्य देव पर क्रोधित हो गए और उन्होने श्राप दिया कि सूर्य देव को कुष्ट रोग हो जाए। श्राप के प्रभाव से सूर्य देव को कुष्ट रोग हो गया। सूर्य देव के इस रोग की पीड़ा में देख उनकी दूसरी पत्नी संज्ञा ने भगवान यमराज की आराधना की। देवी संज्ञा की तपस्या से प्रसन्न होकर यमराज आते हैं और सूर्य देव को शनि देव और उनकी मां के श्राप से मुक्ति दिलाते हैं।
सूर्य देव जब पूरी तरह स्वस्थ हो जाते हैं तो अपनी दृष्टि पूरी तरह कुंभ राशि पर केंद्रित कर देते हैं। इससे कुंभ राशि आग का गोला बन जाती है, यानि शनि देव का घर जल जाता है। जिसके बाद छाया और शनि देव बिना घर के घूमने लगते हैं। तब सूर्य देव की दूसरी पत्नी संज्ञा को आत्मगिलानि होती है। वे सूर्य देव से शनि देव और छाया को माफ करने की विनती करती हैं। इसके बाद सूर्य देव शनि से मिलने के लिए जाते हैं। जब शनि देव अपने पिता सूर्य देव को आता हुआ देखते हैं, तो वे अपने जले हुए घर की ओर देखते हैं। वे घर के अंदर जाते हैं, वहां एक मटके में कुछ तिल रखे हुए थे। शनि देव इन्हीं तिलों से अपने पिता का स्वागत करते हैं। इससे भगवान सूर्य देव प्रसन्न हो जाते हैं और शनि देव को दूसरा घर देते हैं, जिसका नाम है मकर। मकर काल चक्र सिद्धांत के अनुसार 10वीं राशि होती है। इसके बाद शनि देव के पास दो घर को जाते हैं मकर और कुंभ। इसलिए जब सूर्य देव अपने पुत्र के पहले घर यानि मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो इसे मकर संक्रांति कहा जाता है।
कहा जाता है कि मकर संक्रान्ति के दिन पहली बार भगवान राम ने पतंग उड़ाई थी। इसको लेकर एक कथा भी प्रचलित है। कथा के अनुसार एक बार मकर संक्रान्ति के दिन उत्तरायण की खुशी में भगवान राम पतंग उड़ा रहे थे। लेकिन वो पतंग उड़कर इन्द्रलोक में चली गई और इंद्र के पुत्र जयंत को मिली। इसके बाद उसने वो पतंग अपनी पत्नी को सौंप दी।
इधर भगवान राम ने हनुमान जी को वो पतंग इन्द्रलोक से वापस लाने के लिए कहा। जब हनुमानजी ने इंद्रलोक पहुंच कर जयंत की पत्नी से पतंग वापस मांगी तो उन्होंने हनुमान जी से कहा कि वो पहले श्रीराम के दर्शन करना चाहती हैं। इस पर हनुमान ने भगवान राम को पूरा बात बताई। तब श्रीराम बोले कि वे चित्रकूट में उनके दर्शन कर सकती हैं। हनुमान जी ने राम जी का संदेश जब उन्हें दिया तो उन्होंने श्रीराम की पतंग लौटा दी। इसके बाद से मकर संक्रान्ति पर पतंग उड़ाने की परंपरा शुरू हुई और भारत में तमाम जगहों पर इस परंपरा को आज भी निभाया जा रहा है।
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं।Aurangabad Now इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन पर अमल करने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें।)
Source: Aurangabad Now