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सिटीजन रिपोर्टर
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कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के साथ ही चातुर्मास खत्म हो गया है और इस चातुर्मास (चातुर्मास के बारे में नीचे पढिये) की समाप्ति के साथ ही शादी, मांगलिक कार्यों आदि के लिए शुभ मुहूर्त की शुरुआत हो गयी है। पिछले दो वर्षों में लॉकडाउन और अन्य पाबंदियों की वजह से जिन लोगों का वैवाहिक कार्यक्रम रुका हुआ था उनका भी नया डेट फिक्स हो गया है। लेकिन इस सीज़न की शादियों का उत्साह भी सरकारी गाइडलाइंस ठंढा करता हुआ दिखाई दे रहा है।
गृह विभाग, बिहार सरकार ने क्राइसिस मैनेजमेंट ग्रुप की बैठक के बाद 14 नवंबर को अनलॉक 8 से संबंधित गाइडलाइंस जारी किया है। ये प्रतिबंध फिलहाल 16 नवंबर से 22 नवंबर तक राज्य में लागू रहेंगे। इस गाइडलाइंस की clause 4 के तहत वैवाहिक कार्यक्रम के आयोजनों में कोविड अनुकूल व्यवहार और अद्यतन मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) का पालन करना अनिवार्य होगा। आसान भाषा में समझाएं तो मास्क का उपयोग, सामाजिक दूरी, सैनिटाइजर का इस्तेमाल आदि करना जरूरी होगा।
इसके साथ ही साथ इस गाइडलाइंस में शादियों में DJ का इस्तेमाल और बारात जुलूस की भी इजाजत नहीं दी गयी है। किसी भी वैवाहिक आयोजन की सूचना स्थानीय थाने को कम से कम 3 दिन पहले देना होगा।
अब अगले गाइडलाइंस में भी सरकार इस प्रतिबंध को जारी रखती है या इसमें कुछ ढील दी जाएगी ये देखना दिलचस्प होगा।
पिछले 2 सीज़न से शादी-विवाह आदि कार्यक्रमों में लगे प्रतिबंध की वजह से बैंड वालों का बाज़ार सुस्त था। कुछ लोगों की हालत तो इतनी खराब हो गयी थी उन्हें अपना बिज़नेस भी बदलना पड़ा। इस वर्ष ये लोग अच्छी कमाई की आस लगाकर बैठे हैं। अगर आने वाले दिनों में भी सरकारी गाइडलाइंस में राहत नहीं दी जाती है तो इनकी आस किस हद तक पूरी हो पाएगी कहना मुश्किल ही हो जाएगा।
प्रभात खबर ने आज अपनी रिपोर्ट में बताया है कि सदर अस्पताल के नजदीक वाले न्यू पंजाब बैंड में नवंबर-दिसंबर के लिए सिर्फ 12 बुकिंग ही हुई है। कुछ ऐसा ही हाल दूसरे बैंड्स का भी है। अगर सरकार जल्द ही कोई छूट की घोषणा नहीं करती है तो इनके परिवार का पेट पालना भी मुश्किल हो जाएगा।
चातुर्मास को चौमासा भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से चातुर्मास प्रारंभ हो जाते हैं। इस एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इस तिथि से सृष्टि के संचालन करने वाले भगवान विष्णु क्षीर सागर में योग निद्रा के लिए चले जाते हैं। इस दौरान सृष्टि का संचालन भगवान शिव अपने कंधों पर ले लेते हैं। भगवान विष्णु के शयन की यह अवधि चार महीनों की होती है इस कारण से इसे चातुर्मास कहा जाता है। हिंदी पंचांग के चार महीने श्रावण, भाद्रपद, अश्विन और कार्तिक चातुर्मास कहलाता है।
देवोउत्थान एकादशी (आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी) पर भगवान विष्णु नींद से जागते हैं और पुन: सृष्टि का संचालन अपने हाथों में ले लेते हैं।
चातुर्मास के दौरान कई तरह के कार्य निषेध हो जाते हैं। जैसे विवाह, यज्ञोपवीत संस्कार, दीक्षाग्रहण, यज्ञ, गोदान, गृहप्रवेश आदि सभी शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।
शास्त्रों के अनुसार राजा बलि ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। घबराए इंद्रदेव व अन्य सभी देवताओं ने जब भगवान विष्णु से सहायता मांगी तो श्री हरि ने वामन अवतार लिया और राजा बलि से दान मांगने पहुंच गए।
वामन भगवान ने दान में तीन पग भूमि मांगी। दो पग में भगवान ने धरती और आकाश नाप लिया और तीसरा पग कहां रखे जब यह पूछा तो बलि ने कहा कि उनके सिर पर रख दें। इस तरह बलि से तीनों लोकों को मुक्त करके श्री नारायण ने देवराज इंद्र का भय दूर किया।
राजा बलि की दानशीलता और भक्ति भाव देखकर भगवान विष्णु ने बलि से वर मांगने के लिए कहा। बलि ने भगवान से कहा कि आप मेरे साथ पाताल चलें और हमेशा वहीं निवास करें। भगवान विष्णु ने अपने भक्त बलि की इच्छा पूरी की और पाताल चले गए। इससे सभी देवी-देवता और देवी लक्ष्मी चिंतित हो उठी।
देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को पाताल लोक से मुक्त कराने लिए एक युक्ति सोची और एक गरीब स्त्री बनकर राजा बलि के पास पहुँच गईं। इन्होंने राजा बलि को अपना भाई मानते हुए राखी बांधी और बदले में भगवान विष्णु को पाताल से मुक्त करने का वचन मांग लिया। भगवान विष्णु अपने भक्त को निराश नहीं करना चाहते थे इसलिए बलि को वरदान दिया कि वह साल आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक पाताल लोक में निवास करेंगे, इसलिए इन चार महीनों में भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं।
Source: Aurangabad Now