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सिटीजन रिपोर्टर
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'जो जीता वही सिकंदर' ये कहावत सदियों से हमारे समाज में चल रहा है लेकिन जो नहीं जीता उसका क्या? जी हाँ हम बात कर रहे हैं BPSC (बिहार लोक सेवा आयोग) सिविल सर्विसेज एग्जाम रिजल्ट की। जब से BPSC ने 64वीं सिविल सर्विसेज परीक्षा का अंतिम परिणाम प्रकाशित किया है तब से अलग अलग मीडिया रिपोर्टों में खोज-खोज कर सफलता प्राप्त अभ्यर्थियों की कहानी शेयर की जा रही है। रिजल्ट प्रकाशन के 10 दिन हो चुके हैं लेकिन ये सिलसिला अभी तक जारी है।
किसी ने रिक्शा चलाकर पढ़ाई की तो किसी ने अंडे बेचकर, सबकी स्टोरी खूब वायरल है लेकिन उन छात्रों की स्टोरी किसी ने कवर नहीं की जो इस परीक्षा में 1 नंबर या आधे नंबर कम आने की वजह से सफल नहीं हो पाए।
कोई उस अभ्यर्थी का दर्द नहीं समझ सकता जिसका 1 साल सिर्फ 1 या आधा नंबर कम आने की वजह से बर्बाद हो जाता है। यहां हमने 1 साल को भी काफी कम करके कहा क्योंकि ये बिहार है और यहां एक वैकेंसी (विज्ञापन) की नियुक्ति पूरी होने में ही 5-5 साल से अधिक का समय लग जाता है।
हमनें ऐसे ही एक असफल छात्र से बात की, नाम ना छापने के शर्त पर उसने बताया कि सिर्फ कुछ नंबर कम आने की वजह से उसका सलेक्शन नहीं हुआ। वो प्राइवेट जॉब छोड़कर इस परीक्षा की तैयारी कर रहा था। मीडिया में लगातार आ रही टॉपर्स की स्टोरी से उसके ऊपर घरेलू दबाव काफी बढ़ गया है। उसके रिश्तेदारों और दोस्तों ने भी अब ताना देना शुरू कर दिया है। वो फिर से अब प्राइवेट जॉब करने की सोच रहा है।
वैसे छात्र जो इस परीक्षा में असफल हो गये हैं उनका कहना है कि इंजीनियरिंग और मैथ्स पेपर में अधिक मार्किंग किया जाता है जबकि मानविकी और कला जैसे विषयों में नंबर कम दिया जाता है। वे लोग BPSC में सबके लिए एक कॉमन विषय की मांग कर रहे हैं ताकि मार्किंग की असमानता दूर हो सके।
आपको बता दें कि इस वर्ष उतीर्ण हुए छात्रों में इंजीनियरस का बोल बाला रहा है। टॉप 10 के सभी छात्र भी इंजीनियरिंग संकाय से ही हैं।
इस परीक्षा में कुछ दूसरे राज्यों के मेधावी छात्र, या पहले से कहीं सरकारी नौकरी कर रहे लोग या इसी एग्जाम के पिछले बैच में सफल हो चुके छात्र भी सम्मिलित होते हैं लेकिन वो फाइनल रिजल्ट आने के बाद नौकरी जॉइन नहीं करते जिससे उनकी वो सीट खाली रह जाती है। BPSC ने वेटिंग लिस्ट का प्रावधान नहीं रखा है जिसकी वजह से 1 या आधे नंबर से असफल छात्रों को सीट खाली रहने के बावजूद भी अवसर नहीं मिल पाता।
बिहार में BPSC के अलावा और भी कईं परीक्षा बोर्ड्स (BTSC, BSSC, BPSSC आदि) हैं जो अलग अलग पदों के लिए परीक्षाएं आयोजित करवातीं हैं। परीक्षा आयोजन के अलावा इनके पास और कुछ भी काम नहीं है। लेकिन ये बोर्ड्स अपने इस एक काम को भी समय पर नहीं कर पा रहीं हैं। बिहार में एक भी ऐसा परीक्षा बोर्ड नहीं है जो अपने कैलेंडर के साथ समय पर चल रहा हो।
खैर यहां हम सिर्फ BPSC की चर्चा करने वाले हैं। हम आपको BPSC के कुछ पेंडिंग एग्जाम्स के बारे में बता रहें हैं जो सालों से लटके पड़े हैं-
इसके अलावा मिनरल डेवलोपमेन्ट ऑफिसर, प्रोजेक्ट मैनेजर, ऑडिटर, लेक्चरर आदि जैसे कईं विज्ञापन हैं जिनकी परीक्षा ही नहीं हुई है या फिर नियुक्ति पेंडिंग है।
BPSC अपनी परीक्षाओं को offline मोड में आयोजित करता है जिसकी वजह से कोरोना काल के दौरान परीक्षा आयोजित करवाना संभव नहीं था। कुछ परीक्षाओं के डेट कोरोना की पहली लहर में ही बढ़ा दिए गए थे और उनका डेट जब वापिस से तय हुआ तो कोरोना की दूसरी लहर आ गयी। उम्मीद है कि कोरोना के केस में कमी होने के उपरांत BPSC अपनी पेंडिंग एग्जाम्स को जल्द ही पूरा कर लेगी।
Source: Aurangabad Now