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सिटीजन रिपोर्टर
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सहस्रार चक्र पर विराजमान महागौरी के जागृत होने से सर्वोच्च चेतना की झलक मिलती है, जो किसी चमत्कार के मानिंद है। जिस प्रकार सूर्योदय के साथ ही अंधकार लुप्त हो जाता है, उसी प्रकार अपने अंदर महागौरी के प्राकट्य से समस्त अज्ञान, विकार और अंधकार ओझल हो जाता है और भी नाड़ियों की शक्ति का प्रवाह सहस्रार केंद्र में होने लगता है। इसके साथ ही मानव महामानव और परमहंस में रूपांतरित हो जाता है।
नवरात्रि में पूजित अष्टम शक्ति का नाम महागौरी है। देवी महागौरी आध्यात्मिक उद्देश्यों की वाहक हैं, जो सहस्त्रार चक्र की मध्यशक्ति है और अभय मुद्रा, वर मुद्रा, डमरू और शूल से हमें महाध्वनि अर्थात परम नाद से जोड़ने में सहायक होती है। महागौरी की शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनका स्वयं में जागरण समस्त कल्मष को मिटा देता हैं और पूर्वसंचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं। महागौरी के जागृत होते ही कर्मों की दिशा बदल जाती है और पाप-संताप, दैन्य-दुःख से परे होकर जीव समस्त प्रकार से पावन और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है।
ये सहस्रार चक्र की मध्य शक्ति हैं। सहस्रार चक्र अर्थात् हजार, असंख्य, अनंत, अगणित। यह चक्र देह का शिखर बिंदु है। सूर्य की भांति प्रकाश के विकिरण के कारण इसे ब्रह्म रन्ध्र और लक्ष किरणों का केंद्र भी कहते हैं। अन्य सभी चक्रों की ऊर्जा और विकिरण सहस्रार चक्र के विकिरण में धूमिल हो जाती हैं। मान्यताएं इनका वर्ण गौर मानती हैं। उनकी गौरता की उपमा कुंद के फूल, शंख और चंद्र से की जाती है पर महागौरी का कोई विशेष रंग या गुण नहीं है। वह तो विशुद्ध प्रकाश है। अंतर्मन का महाआकाश है।
महागौरी की महत्त्वपूर्ण बल मेधा शक्ति है। विज्ञान मेधा शक्ति को एक प्रकार का हार्मोन है, जो मस्तिष्क की प्रक्रियाओं जैसे स्मरण शक्ति, एकाग्रता और बुद्धि को प्रभावित करता है। ध्यान- भजन (भजन- यानी ब्रह्मांडीय ध्वनियों का श्रवण) के अभ्यास से मेधा शक्ति को अपार बल मिलता है और यह सक्रिय और मजबूत होकर जीव के जीवन की दशा और दिशा बदल देती है और ज्ञान, ज्ञाता और ज्ञेय एक बिंदु पर समाविष्ट होकर पूर्णता के अहसास से सराबोर कर देते हैं।
श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥
Source: Aurangabad Now